वाणी का महत्व
केवल मनुष्य ही एक ऐसा जीव है, जिसे भगवान ने वाणी को मन मुताबिक ढालने का वरदान दिया है। वाणी हमारे विचारों को पवित्र और दूषित भी कर सकती है। इसलिए इस वाणी के उपहार का सदुपयोग करने का सुझाव बहुत से संतों ने दिया है...
तुलसी दास जी कहते हैं... जीभ ऐसी दरवाजे की देहरी है जहाँ पर राम नाम का "मणि दीप" रख देने से बाहर और भीतर दोनों का अँधेरा मिट जाता है और इस तरह जहाँ भी चाहो, वहां उजाला हो जाता है। इसका अर्थ वाणी की सच्चाई, सफाई, मधुरता और राम नाम के ध्यान और जाप से तो है ही, बल्कि ऐसा दीप रख पाने के मन के संकल्प और साहस से भी है।
ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय॥
कबीर दास जी कहते हैं... मन के अहंभाव को खोकर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि अपने को तो शान्ति मिले ही, दूसरे भी प्रसन्न हो जाएँ।
वाणी का महत्व
बात प्राचीन समय की है । एक राजा जंगल की सैर पर निकले थे । उनके साथ सैनिकों का दल भी था । घूमते-घूमते राजा को प्यास सताने लगी । यह जानकर सैनिक पानी की तलाश में निकल पड़े । उन्होंने देखा कि एक कुआँ है जहाँ एक अंधा व्यक्ति राहगीरों को पानी पिला रहा है । सैनिकों ने उसे निर्देश के स्वर में कहा- “अंधे ! एक बड़े लोटे में पानी भर कर दो ।”
अंधे को सैनिकों का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा । उसने कहा- “मैं आप लोगों को पानी नहीं दे सकता ।” राजा के सिपाही गुस्से में वापस आ गये । पानी नहीं ला पाने की कहानी जब सेनापति ने सुना तो वह भी कुएँ की ओर चल पड़ा । अंधा लोगों को पानी पिला ही रहा था । सेनापति ने उससे कहा- “अंधे भाई, जरा मुझे एक लोटा पानी तो देना, प्यास से हाल बेहाल है ।” अंधे को लगा कि यह सैनिक का सरदार है जरूर पर मन से कपटी है और ऊपर से मीठा-मीठा बोलता है । उसने सेनापति को भी साफ कह दिया कि पानी नहीं मिल सकेगा ।
जब यह घटना राजा के कानों तक पहुँची तो वे मन-ही-मन मुस्काये और चुपचाप कुँए की ओर चल पड़े । वे आगे-आगे, सैन्य-सामंत पीछे-पीछे । उन्होंने अभिवादन कर बोला, “बाबा जी, प्यासा हूँ, थोड़ा पानी पिलाने की कृपा कर देंगें क्या ?” इस पर अंधे को बहुत प्रसन्नता हुई । उसने कहा, “जी राजा साहब, अभी पानी पिलाता हूँ, आप यहाँ विराजें ।”
अपनी प्यास बुझाने के बाद उन्होंने अंधे व्यक्ति से पूछा, “बाबा, आप देख नहीं पाते फिर भी कैसे जान पाये कि एक सिपाही, एक सेनापति और मैं राजा हूँ ?”
अंधे व्यक्ति से बड़ी सहजता से कहा, “महाराज, व्यक्ति की वाणी ही उसके व्यक्तित्व का ज्ञान कराती है कि व कितना शिष्ट और सभ्य है ।”
मधुर वाणी
हमारे मनीषियोंने बार-बार कहा है कि जो व्यक्ति दूसरों के प्रति कडे शब्दों का व्यवहार करता है और पर-निंदा करता है, वह ऐसा पापाचरणकरता हुआ शीघ्र ही विपत्तिायोंमें फंस जाता है। इसलिए न तो किसी को अपशब्द कहे, न दूसरों का अपमान करें और न दुष्ट लोगों की संगति करें। रूखी, कठोर व दूसरों को पीडा पहुंचाने वाली वाणी का त्याग होना चाहिए, क्योंकि मनुष्य की वृद्धि और विनाश उसकी जिज्जाके अधीन होते हैं। मनुष्य का मान-अपमान, उसका आदर-अनादर, उसकी प्रतिष्ठा-अप्रतिष्ठा सब उसकी जिज्जाके वशीभूत होते हैं। वाक-कुशलता बुद्धिमान का एक प्रशंसनीय लक्षण होता है। विदुर ने लक्ष्मी व यश दिलाने वाले सात लक्षण बताए हैं, जिनमें एक मधुर वाणी भी है। जिस मनुष्य में यह गुण होता है, वह अपने विरोधियों और शत्रुओं को भी मित्र बना लेता है। कटु वचन नासूर की तरह प्रेम को खा जाते हैं।
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