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सामाजिक उत्‍थान में नारी का महत्व

नारीसमाज के निर्माण में नारी का बहुत बड़ा एवं उच्‍चकोटी का योगदान है अत: उसका समाज में अत्‍याधिक महत्‍व हो जाता है । नारी समाज की जननी, चरित्रवान एवं गौरवमयी है । बच्‍चों में सु-संस्‍कारों की जन्‍मदात्री, लालन-पालन, चरित्र निर्माण और शिक्षा में पूर्ण सहयोगी तथा ममतामयी है । परिवार को सुचारू रूप से चलाने वाली कुशल गृहिणी, गृह लक्ष्‍मी एवं अन्‍नपूर्णा है । पति की छाया (जीवन संगिनी) बनकर निरंतर साथ निभाने वाली पवित्र गंगा की धारा और आर्थिक विकास में वह सह-भागिनी है ।

संकट की घड़ियों में वह धैर्यवान, शौर्यवान और शक्ति स्‍वरूपा है । सामाजिक रीतियों-नीतियों का कुशलता पूर्वक निर्वाह करने वाली सुलक्षणा है । 


अपनी कर्मठता से सबका हृदय जीतने वाली है । यदि ऐसी सुशील, विवेकशील नार शिक्षित हो, तो वह परिवार व समाज का गौरव है । नारी अधिक शिक्षा में प्राय: हम लोग बाधक होते हैं । नारी अधिक शिक्षित होकर क्‍या करेगी ! क्‍या उसे नौकरी पर जाना है ? ऐसे अनगिनत सवाल हम खड़े कर देते है । जरा, आप सोचे यदि नारी शिक्षित होगी तो वह अपने बच्‍चों को पढ़ा सकती है ।

पति के काम की चीजों को सुव्‍यवस्थित कर सकती है । अपने विचारों का आदान-प्रदान कर सकती है । आपके साथ सहयोग कर सकती है । पढ़-लिख कर नारी ज्ञान का दीपक प्रज्‍जवलित कर सकती है । शिक्षित नारी परिवार और समाज को सवांरने, उन्‍नतिशील बनाने में योगदान कर सकती है ।

“नारी का समाज में उतना की महत्व है जितना शरीर में रीढ़ की हड्डी का होता है। नारी धर्म को धारण करने वाली महिला के रूप में पहचानी जाती है। बेटी घर की लक्ष्मी है उसे पराया धन समझने की भूल न करें। नारी की जहाँ अद्र्धागिंनी के रूप में पहचान होती है वही उसे आदि शक्ति के रूप मे भी पूजा जाता है” 

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