परिवार का स्वरूप
मानव सम्बंधों पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों को कोई ऐसा समाज नहीं मिला जहाँ विवाह के संबंध परिवार में ही होते हों, इस कारण से परिवार चाहे पितृसत्तात्मक हों या मातृसत्तात्मक, परिवार में पत्नी या पति को अतिरिक्त सदस्यता प्रदान की ही जाती है। युगल परिवार या एकाकी परिवार में पति और पत्नी मिलकर अपनी पृथक घर - गृहस्थी स्थापित करते हैं, परंतु अधिकांशत: समाजों में परिवार 'बृहत्तर कौटुंबिक समूह' का अंग ही माना जाता है और जीवन के विभिन्न प्रसंगों में परिवार के सदस्यों पर घनिष्ट संबध के अतिरिक्त 'बृहत्तर कौटुबिक समूह' का भी नियंत्रण होता है।अमेरिका जैसे उद्योग प्रधान देशों में कुटुंबियों के सम्मिलित एवं बड़े परिवार के स्थान पर युगल परिवार या एकल की बहुलता हो गई है। अमेरिका का समाज पितृसत्तात्मक है, किंतु वहाँ का युगल परिवार किसी एक 'बृहत्तर कुटुंब' का अंग नहीं माना जाता। एकल या युगल परिवार में पति पत्नी और उनके अविवाहित शिशु सम्मिलित माने जाते हैं।
सम्मिलित परिवारों में इनके अतिरिक्त विवाहित बच्चे और उनकी संतान, विवाहित भाई अथवा बहन और उनके बच्चे एक साथ रह सकते हैं। सम्मिलित परिवार में रक्त संबंधियों की मान्यता भिन्न भिन्न समाजों में भिन्न भिन्न है।भारत में एक सम्मिलित परिवार में साधारणत: 10 से लेकर 12 तक सदस्य होते हैं, किंतु कुछ परिवारों में सदस्यों की संख्या 50 - 60 या 100 तक भी होती है। 'समाज के कई बड़े संयुक्त परिवारों से मिलने पर एक बात सामने आई कि इन परिवारों में व्यक्ति से ज़्यादा अहमियत परिवार की होती है। वहां व्यक्तिगत पहचान कोई मुद्दा नहीं होता। परिवार में कुछ बंदिशें होती हैं, जिनका परिवार के सभी सदस्यों को अनिवार्य रूप से पालन करना पड़ता है।
समाजशास्त्री मानते हैं कि बडे़ संयुक्त परिवारों को सही ढंग से चलाने के लिए लोगों को खुद से ज़्यादा परिवार को महत्त्वपूर्ण मानना पड़ता है।'
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