परिवार
मुख्यत: परिवार के अंतर्गत पति, पत्नी और उनके बच्चों का समूह माना जाता है, परंतु विश्व के अधिकांश भागों में परिवार का अर्थ एक सम्मिलित रूप से निवास करने वाले रक्त संबंधियों का वह समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा (गोद लेने) द्वारा परिवार की स्वीकृति प्राप्त व्यक्ति भी सम्मिलित होते हैं।
मुख्यत: परिवार के अंतर्गत पति, पत्नी और उनके बच्चों का समूह माना जाता है, परंतु विश्व के अधिकांश भागों में परिवार का अर्थ एक सम्मिलित रूप से निवास करने वाले रक्त संबंधियों का वह समूह है जिसमें विवाह और दत्तक प्रथा (गोद लेने) द्वारा परिवार की स्वीकृति प्राप्त व्यक्ति भी सम्मिलित होते हैं।
'मानव
समाज में परिवार एक बुनियादी तथा सार्वभौमिक इकाई है। यह सामाजिक जीवन की निरंतरता, एकता एवं
विकास के लिए आवश्यक प्रकार्य करता है। अधिकांश पारंपरिक समाजों में परिवार सामाजिक, सांस्कृतिक,
धार्मिक, आर्थिक एवं
राजनीतिक गतिविधियों एवं संगठनों की इकाई रही है। आधुनिक औद्योगिक समाज में परिवार प्राथमिक रूप से संतानोंत्पत्ति, सामाजीकरण
एवं भावनात्मक संतोष की व्यवस्था से संबंधित प्रकार्य करता है।'
विश्व के सभी समाजों में शिशु का जन्म और पालन पोषण का उत्तरदायित्व परिवार का ही होता है। शिशुओं को संस्कार देने और समाज के आचार, व्यवहार और नियमों में दीक्षित करने का दायित्व मुख्यत: परिवार का ही होता है। इसी परम्परा और नियम के द्वारा समाज की सांस्कृतिक विरासत और संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को स्वभाविक रूप से हस्तांतरित होती रहती है।
'भारत में ख़ासकर गांवों में परिवार बड़े हैं। लेकिन शहरों में परिवार छोटे हैं। शहरों में बच्चे को मां बाप के साथ छोटे से मकान में रहना पड़ता है। कुछ परिवारों में बच्चा अपने चाचा, चाची, मां, पिताके साथ रहता है। परन्तु इन सभी परिवारों में मां बच्चे के बीच सबसे अधिक नजदीकी रिश्ता है। बच्चे के विकास में भी मां की ही सबसे ज़्यादा बड़ी भूमिका रहती है। बच्चा पैदा होने के बाद से मां के आंचल में रहते हुये भी सीखना शुरू कर देता है। मां की लोरियां उसे सिर्फ़ सुलाती ही नहीं उसके अन्दर प्रारंभ से ही सुनने, ध्यान देने और समझने की क्षमता भी विकसित करती हैं। दूसरी ओर मां-पिता या बाबा-दादी, नाना-नानी द्वारा सुनायी गयी कहानियां उसका नैतिक,चारित्रिक विकास करने के साथ ही उसके अंदर मानवीय मूल्यों की नींव भी डालती हैं। इसीलिये मां को पहली शिक्षक भी कहा जाता है।'
परिवार का आधार
परिवार के सदस्यों की सामाजिक मर्यादा और सीमा परिवार से ही निर्धारित होती है। नर नारी के यौन संबंधों का आधार मुख्यत: परिवार के अंतर्गत परिवार की सीमा में निहित होता है। वर्तमान में औद्योगिक सभ्यता से उत्पन्न जनसंकुल समाज और नगर को यदि इसके अंतर्गत ना लेकर छोड़ दिया जाए तो व्यक्ति का परिचय मुख्यत: उसके परिवार और कुल पर आधारित ही होता है।
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