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समाज

समाज की उत्पत्ति :

आदिकाल का मानव ही हमारे समाज का जन्‍मदाता है समाज शब्‍द सभ्‍य मानव जगत का सूक्ष्‍म स्‍वरूप एवं सार है सभ्‍य का प्रथम अक्षर मानव का प्रथम अक्षर मा जगत का प्रथम अक्षर इन तीनों प्रथम अक्षरों के सम्मिश्रण से समाज शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई, जो सभ्‍य मानव जगत का प्रतिनिधित्‍व एवं प्रतीकात्‍मक शब्‍द है


समाज की संज्ञा :

एक से अनेक व्‍यक्तियों के समूह को परिवार तथा एक परिवार से अनेक परिवारों के समूह प्रतिनिधित्‍व को समाज की संज्ञा दी गई है


समाज का निर्माता :

बन्‍धु ही समाज का सच्‍चा निर्माता, सतम्‍भ एवं अभिन्‍न अंग है बन्‍धु, समाज का सूक्ष्‍म स्‍वरूप और समाज, बन्‍धु का विशाल स्‍वरूप है अत: बन्‍धु और समाज एक-दूसरे के पूरक तथा विशेष महात्‍वाकांक्षी है



समाज की आवश्‍यकता क्‍यों ? : (संरचना, रूपरेखा एवं समाज प्रगति में संगठन की उपयोगिता)

स्‍वस्‍थ रीतियों-नीतियों को निर्धारित कर उसके निर्वाह तथा हमारी सामूहिक अनेक जटिलतम समस्‍याओं के निराकरण एवं निदान हेतु समाज की परम् आवश्‍यकत प्र‍तीत हुई सामूहिक एकता एवं बन्‍धुत्‍व बनाये रखने, आपसी भेद-भाव मिटाने, शिष्‍टाचार एवं अनुशासन कायम करने, सद्विचारों की आदानता-प्रदानता, सामूहिक जीवन सुरक्षा हेतु, जीवन के समस्‍त संस्‍कारों, पर्व-उत्‍सवों पर सामूहिक रूप से एकत्रित होने के लिए, हवन-यज्ञ, धार्मिक स्‍थल, धर्मशाला, औषधालय, विद्यालय, पुस्‍तकालय, सार्वजनिक स्‍थल, क्रिडांगन, व्‍यायामशाला, सभा-भवन आदि के निर्माण एवं रख-रखाव, शुद्ध स्‍वस्‍थ एवं स्‍वच्‍छ वातावरण बनाने हेतु, सामूहिक प्रयास से नारे, गीत, व्‍याख्‍यान, फिल्‍म, प्रदर्शनी, पत्रिका प्रकाशन से समूचे भारत के कोने-कोने में बिखरे बन्‍धुओं को एकता के सूत्र में बांधने हेतु प्रबुद्ध बंधुओं का एक मंच बनाया गया समता, सद् पेरणा एवं आदर्श स्‍थापित करने की समाज में संगठन की बड़ी उपयोगिता हो जाती है समाज में संगठन एकता एक प्रबल शक्ति एवं चमत्‍कार का द्योतक है संगठन एकता बड़े से बड़ा कार्य करने की अपार क्षमता रखता है हम संगठित होकर समाज की सेवा एवं विकास कार्यों को तत्‍परता के साथ पूरा कर सकते हैं तन-मन-धन तीन महाशक्तियों के सभागम से समाज का चहुमुखी विकास संभव हो सका है संगठित होकर ही हम समाज की प्रत्‍येक क्षेत्र में निरंतर प्रगति एवं उपलब्धियों के बारे में स्‍वस्‍थ चिंतन कर उसे एक नई दिशा प्रदान कर सकते है समाज के पिछड़ेपन को हम संगठित होकर ही दूर कर पायेंगे अत: हमें संगठित रहने की परम् आवश्‍यकता है

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