समाज में रीति-नीतियों का निर्धारण:
समाज में स्वच्छ एवं स्वस्थ रीति-नीतियों का होना अत्यंत आवश्यक है । इसके अभाव में समाज को कुरीतियों का भयंकर सामना करना पड़ता है, समाज विपरीत दिशा की ओर जाता हुआ नजर आने लगता है । अत: समाज द्वारा स्वच्छ एवं स्वस्थ रीति-नीतियों का प्रसार होना चाहिए, तभी विपरीततओं पर अंकुश लगेगा । समाज में षोढ़श संस्कारों हेतु ऐसी स्वच्छ एवं स्वस्थ रीति-नीतियां होनी चाहिए, जिससे समस्त वर्ग लाभ उछा सके । एक ऐसी सशक्त रेखा निर्धारित हो जिसका सभी निर्वाह कर सके, ऐसी ठोस रीति-नीतियों की परम् आवश्यकता है । यदि समाज में रीति-नीति पुस्तिका का प्रकाशन हो तो वर्तमान व भावी पीढ़ी के लिए बड़ी ही सुगमता होगी ।
समाज में कुरीतियों का निवारण:
समाज में बढती कुरीतियों का प्रचलन एक अत्यंत चिंताजनक विषय है । वे कुरीतियां जो हमारी प्रगतिशीलता में बाधक है, उन्हें हमें समूल हटाने की परम आवश्यकता है । ऐसी जकड़ी हुई प्राचीन परम्पराओं में नई सोच से सुधार और बदलाव लाने की आवश्यकता बढ़ गई है । समाज की कुरीतियों को एक-जुट होकर संघर्ष से ही हम दूर कर पायेंगे । आज की नयी पीढ़ी में बढ़ता नशीला जहर चिंतनीय है, जो पल-पल हमारे शरीर को खोखला कर अनेक बीमारीयों को जन्म देता है । ऐसी घातक बीमारीयों से शरीर को बचाने तथा स्वस्थता कायम करने के लिए समाजिक अभियान चलाने की आवश्यकता है । हमें विकृत समाज नहीं अपितु एक स्वस्थ समाज बनाने की परम् आवश्यकता है ।
समाज में मितव्ययता/फिजुलखर्चीं पर अंकुश की आवश्यकता:
समाज का उच्च एवं संपन्न वर्ग अपने समस्त आयोजनों को बढ़ा-चढ़ा कर सम्पन्न करता है । निश्चित ही इससे समाज का मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । वह भी कर्ज की सूली पर चढ़कर उसका अनुसरण करने लगता है और अपना सर्वस्व मिटा देता है । हमें ऐसे अनुसरण करने वालों को रोकना होगा तथा सर्वस्व विनाश से उनको बचाना होगा । ऐसा मार्ग प्रशस्त करने की आवश्यकता है कि शान भी बनी रहे और विनाश से बचा जा सके । ऐसे लोगों को नयी प्रेरणा देनी होगी कि फिजूलखर्ची के अनुसरणों से हम अपना बचाव कैसे कर सकते हैं । समाज में समय रहते ही इस मितव्ययता पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है ।
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